2021 में श्राद्ध पक्ष का अंतिम दिन यानी सर्वपितृ अमावस्या 6 अक्टूबर दिन बुधवार को है. इस बार यह अमावस्या विशेष है क्योंकि इस बार 11 वर्ष बाद गजछाया योग बन रहा है। गजछाया योग तब बनता है जब सूर्य और चंद्र दोनों ही कन्या राशि के हस्त नक्षत्र में हो, जो कि इस बार होगा. इससे पहले ऐसा योग 11 वर्ष पहले आश्विन अमावस्या बना था. इस कारण यह अमावस्या इस बार विशेष फल देने वाली है.
इस दिन तर्पण के साथ पितरों की विदाई की जाएगी। इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या या महालय अमावस्या भी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन पितरों के श्राद्ध का अंतिम दिन होता है। इसे सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या कहा जाता है क्योंकि इस दिन उन मृत लोगों के लिए पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण कर्म किए जाते हैं, जिनकी मृत्यु तिथि मालूम नहीं होती है।
अगर किसी कारण से अपने परिवार के मृत सदस्य का श्राद्ध उनकी तिथि पर नहीं कर पाए हैं या जिन परिजनों को अपने पितरों की देहांत तिथि ज्ञात नहीं है तो अमावस्या पर उनका श्राद्ध कर्म किया जा सकता है। पितृ मोक्ष अमावस्या पर सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों के पिंडदान आदि शुभ कर्म करना चाहिए। मान्यता है कि पितृ पक्ष में सभी पितृ देवता धरती पर अपने कुल के घरों में आते हैं और धूप-ध्यान, तर्पण आदि ग्रहण करते हैं। अमावस्या पर सभी पितृ अपने लोक लौट जाते हैं।
इस वर्ष 5 अक्टूबर को शाम 7:05 pm से अमावस्या लगेगी और 6 अक्टूबर को शाम 4:34 pm तक रहेगी। इसलिए 6 अक्टूबर को ही सर्व पितृ अमावस्या मनाई जाएगी। सर्व पितृ अमावस्या के दिन सात्विक भोजन बनाकर इसे कौवे, गाय और कुत्ते के लिए निकालें। ऐसा माना जाता है कि पितृ देव ब्राह्राण और पशु पक्षियों के रूप में अपने परिवार वालों दिया गया तर्पण स्वीकार कर उन्हें खूब आशीर्वाद देते हैं। इस दिन अपने पूर्वजों के निमित्त के योग्य विद्वान ब्राह्मण को आमंत्रित कर भोजन कराना चाहिए। इसके अलावा आप निम्नलिखित कार्य भी कर सकते हैं-
1. गरीबों को अन्न का दान करें
2. मछलियों को आटे की गोलियाँ बना कर खिलाएं
3. चींटियों को आटे में शक्कर मिला कर खिलाएं
4. जरूरतमंदों को वस्त्र दान भी कर सकते हैं
5. श्रीमद्भागवद गीता के 7वें अध्याय का पाठ करें. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसका पूरा फल पितरों को समर्पित होता है, ऐसे करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
6. पीपल के पेड़ की जड़ में दूध मिला जल चढ़ाएं
आज के दिन शाम के समय सरसों के तेल का चार मुख वाला दीपक जलाएं. इसे घर की चौखट पर रख दें. प्रातः एक सरसों के तेल का दीपक और जल से भरा लोटा जिसमें काले तिल, जौं और शहद हो, लेकर पीपल की पूजा करने जाएं. अब अपने पितरों को याद करें और उनसे यह प्रार्थना करें कि पितृपक्ष समाप्त हो गया है इसलिए वह परिवार के सभी सदस्यों को आशीर्वाद देकर अपने लोक में वापस चले जाएं. पितरों को विदाई देते समय उनसे किसी भी भूल की क्षमा याचना भी करनी चाहिए. वहां भगवान विष्णु जी का स्मरण कर पीपल के पेड़ के नीचे दीपक रखें और जल चढ़ाते हुए पितरों के आशीर्वाद की कामना करें. पितृ विसर्जन विधि के दौरान किसी से भी बात ना करें.
पितृ पक्ष की अमावस्या से अगले दिन यानि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि शुरू हो रहे हैं
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