माँ कई बार सोचा कहने को
तुम्हे सुनाऊं तुम्हे बताऊँ
तुम क्या हो मेरे जीवन में
पर मन यूँ ही रुक जाता था
मन कहता था कहने से माँ
तुम जाने क्या क्या सोचोगी?
पर मन में यह रहा हमेशा
तुमने क्या क्या दिया मुझे माँ
कितनी रातें बीत गयी मां
यूँ मेरे सिरहाने बैठे
बिता दिए जाने कितने दिन
मेरा पालन पोषण करते
माँ वह जीवन या फिर वे क्षण
जो ईश्वर ने तुम्हे दिए थे
छीन तुम्हारी नींद मां मैं
रात रात भर चैन से सोई
कितने आंसू बहे तुम्हारे
जब मैं दो आंसू भी रोई
सोचा जोड़ गुणा करके मां
तुमको वह सब मैं लौटा दूँ
उश्रण रहूं फिर तेरे कर्ज से
पर देखा माँ शब्द नहीं थे
अंक नहीं था अर्थ नहीं थे
तुमको कुछ वापस देने को
भला विधाता ने क्यों ऐसा
शब्द अर्थ ही नहीं बनाया
केवल मन का संवेदन है
वह सब माँ तुमको अर्पण है
वह सब कुछ माँ तुमको अर्पण है
वह सब कुछ माँ तुमको अर्पण है। ……………
रचना : प्रीती सिंह