सलोनी तिवारी : मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में ओरछा (ORCHHA) तहसील में स्थित राजा राम का मंदिर। यह एक मात्र ऐसा मंदिर है जहाँ श्री राम, भगवान और राजा, दोनों ही रूपों में पूजे जाते हैं। मंदिर के पुजारी संतोष ओझा जी ने ओरछा में राजा रामचन्द्र की स्थापना के बारे में बताया की बुन्देल शासक मधुकर शाह की महारानी कुंवरीगणेश,जो राम भक्त थीं वो भी भगवान् श्री राम को बाल रूप में अयोध्या से अपने साथ ओरछा लेकर आयी थी। उसके पीछे की कहानी के बारे में पंडित जी ने बताया कि प्राचीन समय में ओरछा के राजा मधुकर शाह भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे, जबकि उनकी पत्नी कुंवरीगणेश भगवान श्रीराम की उपासना करती थीं।वे हमेशा रानी को भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करने को कहा करते थे, लेकिन रानी तो श्रीराम का ही नाम जपते रहती थीं।
दोनों के बीच अपने आराध्य को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की होड़ लगी रहती थी। एक बार राजा ने महारानी से वृंदावन चलने के लिए कहा लेकिन महारानी ने प्रस्ताव ठुकराते हुए अयोध्या जाने की जिद कर ली। इस पर राजा ने व्यंग्य करते हुए कहा कि अगर महारानी राम की इतनी ही बड़ी भक्त हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाएँ। महारानी ने चुनौती स्वीकार कर ली और अयोध्या चली गई। महारानी अयोध्या में सरयू नदी के किनारे तपास्या करने बैठ गई। कई महीने की तपस्या के बाद जब भगवान राम के दर्शन महारानी को नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगाकर प्राण देने का प्रयास किया। तभी बालक रूप में भगवान् श्री राम उनकी गोदी में आ गए। महारानी ने उनसे ओरछा चलने की प्रार्थना की। श्री राम इसके लिए तैयार हो गए लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि वो पुष्य नक्षत्र के दिन ही चलेंगे और जहाँ उन्हें विराजमान कर दिया जाएगा, वहाँ से दोबारा उठेंगे नहीं एवं पूरे ओरछा में उनका ही राज होगा। महारानी ने उनकी सभी शर्तें मान लीं।
रास्ते से ही महारानी ने राजा को सन्देश भिजवाया की भगवान् राम के लिए मंदिर बनवाने का इतंजाम करें। राजा ने मंदिर का निर्माण कराना शुरू करा दिया। मंदिर कुछ इस तरह से बनाया गया था की यदि महारानी भगवान् श्री राम को महल से देखना चाहें तो प्रभु के दर्शन उन्हें वहीँ से हो जाएँ।
महारानी के ओरछा पहुँचने पर शर्त के अनुसार राजा मधुकर शाह ने अपना कर्त्तव्य निभाया और राजा रामचन्द्र का राज्याभिषेक किया एवं अपना राज्य राजा रामचन्द्र को सौंप दिया। उसी परम्परा के चलते आज भी भगवान् श्री राम वहां राजा के रूप में पूजे जाते हैं।
राजा द्वारा बनवाये जा रहे मंदिर का काम पूरा नहीं हो सका था जिसके चलते भगवान् राम को रसोई में बैठा दिया गया। जब मंदिर का निर्माण पूरा हुआ तो रानी ने श्री राम से मंदिर में चलने का आग्रह किया लेकिन शर्त के अनुसार जहाँ उनको सबसे पहले बैठाया जायेगा वो वहां से नहीं उठेंगे उस क्रम में भगवान् ने मंदिर में जाने से मना कर दिया और आज जहाँ राम विराजमान है वो रसोई घर है।
निर्माण पूर्ण होने के बाद भी श्री राम मंदिर में विराजमान नहीं हुए। ओरछा में श्री राम, भगवान और राजा, दोनों रूप में पूजे जाते हैं। कहा जाता है कि ओरछा में कोई भी वीआईपी नहीं है। अगर कोई वीआईपी है, तो वह राजा रामचन्द्र हैं। मध्य प्रदेश पुलिस के जवानों के द्वारा सूर्यास्त और सूर्योदय के समय राजा रामचन्द्र को बंदूकों की सलामी अर्थात गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है। ओरछा में यह गार्ड ऑफ ऑनर बाकी किसी को भी नहीं दिया जाता। विश्व का पहला ऐसा मंदिर भी है जहाँ सूर्यास्त के बाद भी गार्ड ऑफ़ ऑनर दिया जाता है। यहाँ दिन में 4 बार आरती होती है।
मंदिर के पुजारी संतोष ओझा जी ने बताया की आज भी भगवान् श्री राम दिन में ओरछा में निवास करते हैं एवं रात्रि में विश्राम के लिए अयोध्या जाते हैं। रात्रि आरती के बाद ज्योति रूप में श्री राम को गाजे बाजे ढोल नगाड़े के साथ नाचते गाते लोग सामने बने हनुमान मंदिर (पाताली हुनमान जी) तक लेकर जाते हैं। वहां से श्री हनुमान जी श्री राम जी को अयोध्या छोड़ने जाते हैं और अगले दिन सुबह भगवान् श्री राम ज्योति स्वरुप में ही वापस ओरछा आते हैं।
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