कावड़ यात्रा का शुभारम्भ सोमवार 22 जुलाई से भगवान शिव के प्रिय माह सावन की शुरुआत हो चुकी है। सावन का महीना भगवान शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए सबसे उत्तम मना जाता है। यही कारण है कि शिवभक्तों को पूरे साल इस माह का बेसब्री से इंतजार रहता है और सावन शुरू होते ही भक्तों में गजब का उत्साह और जोश देखने को मिलता है। इस कावड़ यात्रा में शिव भक्त कठिन तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। सावन माह की इस कावड़ यात्रा को शिव भक्त विधि विधान के साथ करते हैं।
शिव भक्तों के लिए भगवान शिव की कृपा पाने के लिए सावन माह बहुत श्रेष्ठ मना जाता है। कांवड़िया जब कांवड़ में गंगाजल भरकर जय भोले जय शम्भू, हर हर महादेव का जय घोष करते हुए ज्योतिर्लिंगों पर जलाभिषेक के लिए निकलते हैं तो चारों ओर माहौल पीला/केसरिया हो जाता है। ये कांवड़ यात्रा सबसे कठिन और अहम् मना जाता है। लेकिन कावरियों की भक्ति के आगे सब फीका हो जाता है।
कितने प्रकार की होती है ये कांवड़ यात्रा:-मुख्य रूप से कांवड़ यात्रा चार तरह की होती है। इनमें सामान्य कांवड़ यात्रा, डाक कांवड़ यात्रा, खड़ी कांवड़ यात्रा और दांडी कांवड़ यात्रा भी शामिल है। सभी कावड़ यात्राओं के अलग अलग नियम और महत्व जिनमे खासा अंतर भी होता है। इसलिए आप जिस तरह की कांवड़ यात्रा कर रहे हैं आपको उससे संबंधित तैयारी कर लेनी चाहिए और उससे संबंधित नियमों की जानकारी भी रखनी जरुरी है।
आज हम इस लेख में कावड़ यात्रा के बारे में विस्तार विस्तार से जानते हैं:-
1-सामान्य कांवड़ यात्रा:- इस कांवड़ यात्रा में कांवड़िया आराम-आराम से, रुककर या जगह-जगह आराम करते हुए यात्रा पर जाते हैं। साथ ही कांवड़ियों के विश्राम करने के लिए जगह-जगह पर पंडाल भी बनाए जाते हैं। जहाँ वो आराम करके आगे का रास्ता चलते हैं।
2-डाक कांवड़ यात्रा -: इस यात्रा में कांवड़ियों को बिना रुके लगातार चलते रहना पड़ता है।कांवड़ में गंगाजल भरने के साथ ही जलाभिषेक करने तक ये कांवड़िये कहीं भी न तो रुकते हैं और ना हीं विश्राम करते हैं। इसलिए मंदिरों में भी इनके लिए विशेष व्यवस्था की जाती है, जिससे कि इन्हें बिना रोके शिवलिंग तक पहुंचाया जा सके
3-खड़ी कांवड़ यात्रा-: इसमें शिवभक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं और उनकी सहायता के लिए एक सहयोगी भी इनके साथ होता है जोकि हमेशा उनके साथ-साथ चलता है। वह भक्त आराम करता है तो दूसरा सहयोगी अपने कंधे पर कांवड़ लेकर आगे बढ़ता है या खड़ा रहता है।
4-दांड़ी कांवड़ यात्रा-: सभी कांवड़ यात्रा में इसे सबसे कठिन माना जाता है। इसमें भक्त को यात्रा पूरी करने में पूरे महीने का समय लग जाता है। इसमें कांवड़िये को गंगातट से शिवधाम तक दंडौती या दंडवत करते हुए लेट-लेटकर यात्रा पूरी करनी होती है।
कांवड़ यात्रा के नियम:-
इस यात्रा के दौरान कांवड़ियों को किसी भी प्रकार की नशीली पदार्थों के सेवन से दूर रहना चाहिए। साथ ही मांसाहार और तामसिक भोजन जैसे शराब/मदिरा का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए। कांवड़ यात्रा पैदल करनी चाहिए।
भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए कांवड़ में गंगाजल या किसी पवित्र नदी का ही जल भरें। इसे तालाब, कुंए या नल का जल नहीं भरना चाहिए। कांवड़ को स्नान के बाद ही स्पर्श करें। और कावंड़िये जत्थे के साथ रहें।
यात्रा के दौरान विश्राम के लिए यदि आप कहीं रुकते हैं तो कांवड़ को जमीन पर न रखें। इसे किसी स्टैंड पर रखें। जमीन पर कांवड़ रखने से कांवड़ अशुद्ध हो जाता है। और फिर से जलभर यात्रा शुरू करनी पड़ती है।
कांवड़ियों को यात्रा के दौरान बम-बम भोले या शिव जी का जयकारा लगाते हुए यात्रा करनी चाहिए।
कांवड़ यात्रा के महत्व:- भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए कांवड़ यात्रा को बहुत ही फलदायी माना गया है। मान्यता है कि सावन में कांवड़ यात्रा कर शिवलिंग पर जलाभिषेक करने वालों मान्यता पूरी होती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।और जीवन में कष्टों का सामना नहीं पड़ता है। साथ ही घर-परिवार में सुख-समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है। सावन में जो भक्त कांवड़ यात्रा करता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।