कम सुनाई देना बनी एक वैश्विक समस्या, इयरफोन, इयरबड का सावधानी से करें इस्तेमाल..

नई दिल्ली। मनुष्य को कम सुनाई देना या बहरेपन का खतरा वैश्विक स्तर पर बढ़ता हुआ देखा जा रहा है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ कानों की बीमारियां होना एक सामन्य सी बात है। हाल में हुईं एक रिसर्च के मुताबिक आश्चर्यजनक रूप से पिछले कुछ वर्षों में कम आयु के लोगों में भी बहरेपन का खतरा बढ़ता जा रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक हालिया रिपोर्ट में चिंता जाहिर करते हुए कहा, कि इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, खास तौर पर ईयरबड्स और हेडफोन के बढ़ते उपयोग के कारण कम सुनाई देने और बहरेपन के मामलों की संख्या काफी बाढ़ गयी है।

WHO ने अपनी रिपोर्ट में सावधान करते हुए कहा 12-35 वर्ष की आयु के एक बिलियन (100 करोड़) से अधिक लोगों में सुनने की क्षमता कम होना या बहरेपन का जोखिम हो सकता है। इसके लिए मुख्यरूप से लंबे समय तक ईयरबड्स से तेज आवाज में संगीत सुनने और शोरगुल वाली जगहों पर रहना एक बड़ा कारण माना जा रहा है।

इस आवाज़ वाले उपकरण हैं घातक- तेज आवाज वाले ये उपकरण आंतरिक कान को क्षति पहुंचाते हैं। सभी लोगों को इन उपकरणों का इस्तेमाल बड़ी सावधानी से करना चाहिए।

तेज आवाज से कान के पर्दे को हो रहा नुकसान– रिपोर्ट के अनुसार ईयरबड्स या हेडफोन के साथ पर्सनल म्यूजिक प्लेयर का इस्तेमाल करने वाले लगभग 65 फीसदी लोग लगातार 85 db से ज्यादा आवाज में इसे प्रयोग में लाते हैं। इतनी तेज आवाज को कानों के आंतरिक हिस्से के लिए काफी हानिकारक पाया गया है।

शरीर के अन्य भाग भी प्रभावित– तेज आवाज कि वजह से आंतरिक कान की क्षति के ठीक होने की संभावना भी कम होती है। तेज आवाज के संपर्क के कारण समय के साथ कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होती जाती हैं। इससे सुनने की क्षमता और भी कम हो जाती है। आने वाले समय में करोड़ों लोगों में इस तरह की समस्या होने की आशंका है।

डाक्टरों ने जाहिर की चिंता-

कोलोराडो विश्वविद्यालय में ईएनटी विभाग के प्रोफेसर का खना है कि मुझे लगता है कि व्यापक स्तर पर, चिकित्सा और ऑडियोलॉजी समुदाय को इस गंभीर खतरे को लेकर ध्यान देने की आवश्यकता है। युवा आबादी में ईयरबड्स जैसे उपकरणों का बढ़ता इस्तेमाल 40 की उम्र तक सुनने की क्षमता को कमजोर करने वाली स्थिति हो सकती है।

डिमेंशिया का भी बढ़ जाता है खतरा- एक अध्ययन में ये भी पता चला है कि सुनने की क्षमता में कमी को सिर्फ कानों का समस्याओं तक ही सीमित नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे लोगों में मस्तिष्क से संबंधित बीमारियों जैसे डिमेंशिया का जोखिम भी काफी बढ़ जाता है। सुनने की क्षमता में कमी वाले लोगों में डिमेंशिया रोग होने का जोखिम दो गुना अधिक देखा गया। वहीं जिन लोगों को बिल्कुल नहीं सुनाई देता था या जो लोग बहरेपन के शिकार थे उनमें डिमेंशिया के खतरे को पांच गुना अधिक पाया गया।

दाक्यारों का मानना है कि समस्याओं का इलाज करने से संज्ञानात्मक गिरावट और मनोभ्रंश का जोखिमों को कम किया जा सकता है।

उपकरण की ध्वनि रखें कम-

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, ध्वनि को डेसिबल नामक इकाई में मापा जाता है। 60-70 डेसिबल या उससे कम की ध्वनि को आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है। हालांकि, 85 या उससे अधिक की ध्वनि के लंबे समय तक या बार-बार संपर्क में रहने से सुनने की क्षमता कम हो सकती है। ईयरबड्स और हेडफोन्स जैसे उपकरणों की ध्वनि 100 से अधिक हो सकती है, जिसका अगर कुछ घंटे ही इस्तेमाल कर लिया जाए तो कानों की कोशिकाएं प्रभावित होती हैं और सुनने की समस्या बढ़ने का जोखिम बढ़ सकता है।

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