पुत्रदा एकादशी का व्रत इस कहानी के बिना है अधूरा, भूलकर भी न करें ये गलती..

नई दिल्ली। सावन माह के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी के व्रत का विशेष महत्त्व है। इस एकादशी व्रत का फल तभी मिलता है जब सही समय पूजा और पारण किया जाए, साथ ही व्रत से जुड़ी कथा पढ़ी या सुनी जाए।

संतान प्राप्ति के लिए रखते हैं ये व्रत-  पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से संतान प्राप्ति होती है, संतान से सुख मिलता है और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। पंचांग के अनुसार सावन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी कि पुत्रदा एकादशी 15 अगस्त को सुबह 10 बजकर 26 मिनट से प्रारंभ हो चुकी है, जो कि 16 अगस्त को सुबह 09 बजकर 39 मिनट पर समाप्‍त होगी। लिहाजा पुत्रदा एकादशी व्रत 16 अगस्त 2024, शुक्रवार को रखा जाएगा। आज के दिन भगवान विष्‍णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है। ध्‍यान रहे कि पूजा में पुत्रदा एकादशी व्रत कथा जरूर पढ़ें।

एकादशी व्रत पारण का समय – पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण अगले दिन 17 अगस्‍त को द्वादशी तिथि के दिन करें। पुत्रदा एकादशी का पारण समय 17 अगस्त 2024, शनिवार को सुबह 05 बजकर 51 मिनट से लेकर 08 बजकर 05 मिनट तक है।

पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्‍व- पुत्रदा एकादशी के महत्व के बारे में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया था। साथ ही कहा था कि हे धनुर्धर अर्जुन! श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी की कथा को सुनने मात्र से अनंत यज्ञ के बराबर फलों की प्राप्त होती है।

पुत्रदा एकादशी की संपूर्ण व्रत कथा- पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग के आरम्भ में ही महिष्मती नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा शासन करता था। वह धर्मात्मा और प्रजा के प्रति बहुत ही दयालु था, लेकिन संतान नहीं होने के कारण वह बहुत दुखी रहता था।

राजा ने अपने मंत्रियों और प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाकर अपनी व्यथा बताई. वे सभी मिलकर एक महान तपस्वी लोमश ऋषि के पास गए और उनसे समाधान मांगा। ऋषि ने राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत सुनाया। राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था और उसने ज्येष्ठ मास की द्वादशी के दिन एक प्यासी गाय को पानी पीने से रोका था। इसी कारण उसे इस जन्म में पुत्र वियोग का दुख मिल रहा था।

किसे कहते हैं पुत्रदा एकादशी– ऋषि ने बताया कि श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे पुत्रदा एकादशी कहते हैं, का व्रत करने से राजा का पाप नष्ट हो जाएगा और उसे पुत्र की प्राप्ति होगी। राजा और उसकी प्रजा ने ऋषि के बताए अनुसार व्रत किया और जागरण किया। इसके फलस्वरूप रानी ने गर्भ धारण किया और एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया।

इस व्रत के रखने से बनते हैं ये काम- इस कथा के माध्यम से श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि एकादशी का व्रत करने से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि संतान सुख और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह संतान सुख देने वाली मानी जाती है।

अस्वीकरण- यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। आंशिक मीडिया इसकी पुष्टि नहीं करता।

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