भारत के विश्व गुरु की परिकल्पना को सिद्ध करता है इस्कॉन के संस्थापक आचार्य श्रीला प्रभुपाद का प्रचार ।

सलोनी तिवारी : कानपुर : 27 अगस्त मंगलवार को नंदोत्सव के दिन मैनावती मार्ग स्थित इस्कॉन कानपुर में भक्तों का श्रीकृष्ण के दर्शन लिए सुबह से भीड़ लगी रही । शाम को मंदिर में जगद्गुरु भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद का 128वां आविर्भाव दिवस भव्य रूप से आयोजित हुआ। इस अवसर पर मंदिर में चार्ट बनाने की प्रतियोगिता और नाटिका का भी मंचन किया गया । साथ ही साथ करीब सौ गृहस्थ भक्तों ने श्रीला प्रभुपाद जीका आश्रय गृहण किया और इस्कॉन शिष्य कोर्स के प्रमाण पत्र प्राप्त किए ।
श्रील प्रभुपाद का जन्म 1 सितंबर 1896 को नंद उत्सव के पवित्र तिथि पर कोलकाता के आध्यात्मिक वैष्णव परिवार में हुआ।बचपन से ही उन्हें उनके पिता श्रीमान गौर मोहन डे जी के द्वारा श्री कृष्ण भक्ति की प्रारंभिक संस्कार प्रदान किए गए थे।बाल्यावस्था से ही उनका मृदंग बजाने में ,भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को आयोजित करने में, एवं शास्त्रों का अध्ययन करने में गहरी रुचि थी। उनका बचपन का नाम अभय चरण था।आगे चल के उन्होंने कोलकाता के प्रतिष्ठित स्कॉटिश चर्च कॉलेज से विद्यार्जन पूर्ण किया।तत्पश्चात 1922 में वे अपने आध्यात्मिक गुरु महान विद्वान श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर से प्रथम बार मिले।उस प्रथम भेंट में ही उनके गुरु ने उनमें महान भारतीय आध्यात्मिक प्रचारक बनने की क्षमता को पहचान लिया था।आगे चलकर 1933 में उन्होंने अपने गुरु से दीक्षा प्राप्त की और उनका नाम अभय चरणारविंद दास हुआ।अपने आध्यात्मिक गुरु द्वारा उनको पाश्चात्य देश में श्रीमद्भगवद्गीता एवं श्रीमद भागवतम के ज्ञान का प्रचार करने का आदेश प्राप्त हुआ था।
अपने गुरु के आदेश को पूर्ण करने हेतु 1965 में श्रील प्रभुपाद जलदूत नामक एक माल वाहक जहाज में कठिन यात्रा के पश्चात अमेरिका पहुंचे। इस यात्रा के दौरान उन्हें दो बार दिल के दौरे का सामना करना पड़ा।न तो उनका कोई सहयोगी था न ही उनके पास कोई संसाधन थे परंतु अपने हृदय में अपने गुरु की कृपा एवं श्री चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं को धारण करके वे श्री श्री राधा कृष्ण की कृपा को पाश्चात्य देश के कोने-कोने तक ले गए।
श्रील प्रभुपाद जी श्री चैतन्य महाप्रभु के सेनापति भक्त थे जिन्होंने संपूर्ण विश्व में भगवान श्री कृष्ण की प्रेममय भक्ति को वितरित किया।
आज पूरे विश्व के हर देश में जगन्नाथ रथ यात्रा, हरे कृष्ण महामंत्र का संकीर्तन संकीर्तन ,शास्त्र अध्ययन इत्यादि हो पा रहा है। यह सब कुछ संभव हुआ श्रील प्रभुपाद के अथक प्रयास के कारण भक्ति वेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद ने एक ऐसी अध्यात्मिक क्रांति की शुरुआत की जो आज भी संपूर्ण विश्व में प्राणी-मात्र को अपनी वास्तविक स्थिति को अनुभव करते हुए जीवन का उत्कृष्ट मार्ग दिखा रही है।

श्रील प्रभुपाद ने अकेले 70 वर्ष की वृद्धावस्था में अमेरिका जाकर कृष्ण भक्ति का प्रचार प्रसार किया और इस्कॉन की स्थापना की। मात्र 12 वर्षों में श्रील प्रभुपाद ने संपूर्ण विश्व में 108 मंदिरों का निर्माण किया, 70 से भी अधिक ग्रंथों का को लिखा । श्रील प्रभुपाद ने महान वैदिक ग्रंथ जैसे श्रीमदभगवद्गीता, श्रीमद् भागवत महापुराण, श्री चैतन्य चरितामृत इत्यादि का अंग्रेजी में अनुवाद करके अपने अत्यंत विशेष भक्ति वेदांत तात्पर्य प्रदान किए।
प्रभुपाद की इन पुस्तकों के द्वारा संपूर्ण विश्व में कृष्ण प्रेम की ऐसी बाढ़ आई जिसका साक्षी इतिहास आज भी है।
पिछले 58 वर्षों में इस्कॉन के 1100 से भी अधिक केंद्र,100 से भी अधिक शुद्ध शाकाहारी भोजनालय एवं विभिन्न प्रकार के फार्म कम्युनिटी प्रोजेक्ट्स सेवारत हैं ।
तीन दिवसीय जन्माष्टमी महा कार्यक्रम के अंतर्गत इस्कॉन कानपुर में इस पवित्र उपलक्ष्य पर सर्वप्रथम श्रील प्रभुपाद के विग्रह का महाभिषेक संपन्न हुआ।
तत्पश्चात श्रीमान वंशी वदन प्रभु जी के द्वारा श्रील प्रभुपाद के महान गुणों पर महत्वपूर्ण कथा की गई जिसके द्वारा उन्होंने हमें श्रील प्रभुपाद की शिक्षाओं से प्रेरणा प्रदान की।इसी के साथ इस्कॉन कानपुर से जुड़े अनेकों भक्तों ने भी श्रीला प्रभुपाद के प्रति अपनी कृतज्ञता को व्यक्त करते हुए उनसे आध्यात्मिक प्रगति हेतु प्रार्थना की। जन्माष्टमी उत्सव के अंतिम दिन इस्कॉन द्वारा घर-घर राधा कृष्ण नमक प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया था जिसमें विभिन्न श्रेणियां में छोटे-छोटे बच्चों ने राधा कृष्ण की लीलाओं की झांकियां को प्रस्तुत करके अपनी कलाओं का प्रदर्शन किया।आगे भगवान की छठी तक कीर्तन और झांकी का मंदिर में आयोजन होता रहेगा जिसमें सभी लोग आकर जन्माष्टमी के इस पर्व पर कृष्ण भक्ति में लीन हो सकते है, आने वाली ११ सितंबर को राधाष्टमी इस्कॉन मंदिर में बनाई जाएगी।

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