कभी थी वर्दी की ख्वाहिस ति कभी फुटबाल, ट्रेन हादसे ने छीने सपने, फिर भी नहीं मानी हार और जीत लिया गोल्ड मेडल

नई दिल्ली। भारतीय टीम ने पैराओलम्पिक मे एक और गोल्ड जीतकर देश टाइरंगा फहरा दिया है। नितेश कुमार ने बैडमिंटन के सिंगल्स SL3 फाइनल में ग्रेट ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को मात देते हुए गोल्ड मेडल पर कब्जा कर लिया है। उन्होंने फाइनल मुकाबला 21-14, 18-21 और 23-21 से अपने नाम किया है। वह मौजूदा पैरालंपिक में बैडमिंटन में गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं। साल 2009 में ट्रेन दुर्घटना में उन्होंने अपना पैर गंवा दिया। इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत ना हारते हुए खेल में वापसी की और आज पैरालंपिक में भारत का झंडा गाड़ा है।

शानदार अंदाज में जीता मुकाबला- नितेश ने पहले सेट में दमदार प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने विरोधी खिलाड़ी को टिकने का कोई मौका नहीं दिया। डेनियल बेथेल भारतीय खिलाड़ी नितेश कुमार के सामने बुरी तरह से मात खाये। नितेश ने शानदार खेल का नमूना पेश किया। उन्होंने शुरुआत से ही बढ़त बरकरार रखी है। इसी वजह से उन्होंने सेट 21-14 से अपने नाम कर लिया।

दूसरे सेट में मामला बिल्कुल बदला हुआ नजर आया। इस सेट में ग्रेट ब्रिटेन के डेनियल बेथेल बहुत ही आक्रामक नजर आए। इसी सेट में नितेश ने कई गलतियां कीं। अंत में इस सेट को बेथेल ने 21-18 से अपने नाम कर लिया। उन्होंने दूसरा सेट जीतते ही मैच में 1-1 से बराबरी भी कर ली। फिर तीसरे सेट में नितेश कुमार ने वापसी की और उन्होंने यह सेट 23-21 से जीत लिया। सेट जीतने के साथ ही उन्होंने स्वर्ण पदक भी अपनी मुट्ठी में कर लिया।

टॉप वरीयता प्राप्त नितेश ने सेमीफाइनल में जापान के डाइसुके फुजिहारा पर सीधे गेम में शानदार जीत से पुरुष एकल SL3 वर्ग के फाइनल में प्रवेश किया था। नितेश (29 वर्ष) ने 48 मिनट तक चले सेमीफाइनल में फुजिहारा पर 21-16 21-12 से जीत के साथ अपना जलवा कायम रखा था।

ट्रेन दुर्घटना में गंवाया था पैर-

नितेश कुमार भले ही अब पैरालंपिक में सफलता हासिल करके शिखर पर खड़े हों लेकिन एक समय ऐसा भी था जब वह महीनों तक बिस्तर पर पड़े रहे थे और उनका हौसला टूटा हुआ था। नितेश जब 15 साल के थे तब उनकी जिंदगी में ऐसा भयकर देखा जो हर किसी को उखाड़ के फेंक सकता है। नितेश कुमार 2009 में विशाखापत्तनम में एक ट्रेन दुर्घटना में उन्होंने अपना पैर खो दिया। बिस्तर पर पड़े रहने के कारण वह काफी निराशा हो चुके थे।

उन्होंने याद करते हुए कहा कि मेरा बचपन थोड़ा अलग रहा है। मैं फुटबॉल खेलता था और फिर यह दुर्घटना हो गई। मुझे हमेशा के लिए खेल छोड़ना पड़ा और पढ़ाई में लग गया। लेकिन खेल फिर मेरी जिंदगी में वापस आ गए। नितेश को आईआईटी-मंडी में पढ़ाई के दौरान उन्हें बैडमिंटन की जानकारी मिली और फिर यह खेल उनकी ताकत का स्रोत बन गया। उन्होन कहा कि प्रमोद भैया (प्रमोद भगत) मेरे प्रेरणास्रोत रहे हैं। इसलिए नहीं कि वे कितने कुशल और अनुभवी हैं बल्कि

इसलिए भी कि वे एक इंसान के तौर पर कितने विनम्र हैं। विराट कोहली ने जिस तरह से खुद को एक फिट एथलीट में बदला है, मैं इसलिए उनकी तारीफ करता हूं। अब वह इतने फिट और अनुशासित हैं।

वर्दी के थे दीवाने– नौसेना अधिकारी के बेटे नितेश ने कभी वर्दी पहनने की ख्वाहिश की थी। उन्होंने कहा कि मैं वर्दी का दीवाना था। मैं अपने पिता को उनकी वर्दी में देखता था और मैं या तो खेल में या सेना या नौसेना जैसी नौकरी में रहना चाहता था। लेकिन दुर्घटना ने उन सपनों को उनसे दूर कर दिया। पर पुणे में कृत्रिम अंग केंद्र की यात्रा ने नितेश का नजरिया बदल बदलकर एक नया रास्ता दिखाया।

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