सलोनी तिवारी : उत्तरप्रदेश : परिवर्तिनी एकादशी भाद्रपद शुक्ल एकादशी तिथि कोमनाई जाती है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु के पांचवे अवतार वामन देव की पूजा करने का विधान है। परिवर्तिनी एकादशी पर जो लोग विधि विधान से पूजा – अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं। उनको हजारों अश्वमेध यज्ञ कराने के समान पुण्य प्राप्त होता है।
इस बार की परिवर्तिनी एकादशी 14 सितंबर दिन शनिवार को पड़ रहा है. इसके लिए जरूरी भाद्रपद शुक्ल एकादशी तिथि 13 सितंबर को रात 10:30 बजे से 14 सितंबर को रात 8:41 बजे तक रहेगी
महत्व:
- ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में होते हैं और वे करवट बदलते हैं। इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है।
- इस व्रत के पालन से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यह व्रत सरल होते हुए भी अत्यंत शुभ और फलदायक माना गया है।
परिवर्तिनी एकादशी की पूजा विधि:
- स्नान और संकल्प:
- एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लें।
- संकल्प करते समय भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करने का निश्चय करें।
- मंदिर की सफाई और सजावट:
- घर में भगवान विष्णु या भगवान कृष्ण की प्रतिमा के समक्ष एक साफ स्थान पर पूजा की व्यवस्था करें। पूजा स्थल को फूलों और दीप से सजाएं।
- भगवान विष्णु की पूजा:
- विष्णु जी की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं।
- भगवान को अक्षत (चावल), चंदन, पुष्प, तुलसी के पत्ते, धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करें।
- भगवान को पीले वस्त्र अर्पित करें, क्योंकि पीला रंग विष्णु जी को प्रिय है।
- तुलसी पूजा:
- भगवान विष्णु को तुलसी पत्र विशेष रूप से प्रिय होते हैं, इसलिए उनकी पूजा में तुलसी के पत्तों का विशेष महत्त्व होता है। विष्णु जी को तुलसी के पत्तों के साथ माला अर्पित करें।
- विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तोत्र का पाठ:
- इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। आप चाहें तो विष्णु चालीसा या विष्णु स्तोत्र भी पढ़ सकते हैं।
- भजन और कीर्तन:
- भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन करें। पूरे दिन मन को भगवान के ध्यान में लगाएं।
- रात्रि जागरण:
- एकादशी की रात्रि को जागरण करना अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है। इस दौरान भगवान विष्णु की आरती करें और उनके भजन गाएं।
- व्रत और उपवास:
- इस दिन निराहार (बिना अन्न का) या फलाहार व्रत रखा जाता है।
- द्वादशी के दिन व्रत का पारण (समापन) सुबह उचित समय पर करें। तुलसी और भगवान विष्णु की आरती के बाद अन्न ग्रहण करें।
- दान:
- व्रत समाप्त करने के बाद गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन और वस्त्र दान करें। दान का विशेष महत्त्व इस दिन माना जाता है।
अस्वीकरण- यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। आंशिक मीडिआ किसी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।