सलोनी तिवारी: कालिंजर दुर्ग का इतिहास और धार्मिक महत्व अद्वितीय है। यह स्थान न केवल भगवान नीलकंठ शिवलिंग की पूजा के लिए जाना जाता है, बल्कि इसके ऐतिहासिक महत्व और स्थापत्य कला के कारण भी विशेष है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां लाखों श्रद्धालुओं का आना इस स्थल की लोकप्रियता और आस्था का प्रमाण है। कालिंजर दुर्ग और नीलकंठेश्वर मंदिर का महत्व: धार्मिक मान्यता: मान्यता है कि सागर मंथन से उत्पन्न विष को पीने के बाद भगवान शिव ने यहीं तपस्या कर विष की ज्वाला शांत की थी। इस मंदिर में भगवान शिव के साथ मां पार्वती और भगवान कार्तिकेय की उपस्थिति इसे और भी पवित्र बनाती है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: कालिंजर दुर्ग को भारत के अपराजेय दुर्गों में गिना जाता है। यह दुर्ग चंदेल काल की स्थापत्य कला और सैन्य वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। पहले यह मां काली का शक्तिपीठ था, लेकिन भगवान शिव के आगमन के बाद यह नीलकंठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। पर्यटन और धार्मिक स्थल: कालिंजर दुर्ग केवल श्रद्धालुओं के लिए ही नहीं, बल्कि इतिहास और वास्तुकला प्रेमियों के लिए भी एक आकर्षण है। दुर्ग की संरचना और इसकी ऐतिहासिक गाथाएं इसे भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में स्थान देती हैं।
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