महाकाल की आरती के लिए कहाँ से आती है पवित्र भस्म ?

सलोनी तिवारी: उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग विश्व प्रसिद्ध है और यहाँ की भस्म आरती अनूठी और रहस्यमयी मानी जाती है। अंशिका मीडिया की एडिटर सलोनी तिवारी ने महाकालेश्वर मंदिर के महंत श्री विनीत गिरी महाराज जी से बात की।  प्रतिदिन प्रातः 4 बजे होने वाली इस आरती में उपयोग की जाने वाली भस्म को लेकर कई सवाल उठते हैं। आखिर यह भस्म कहाँ से आती है? क्या यह चिता भस्म होती है? आइए जानते हैं इस अनूठी परंपरा का रहस्य।

भस्म का स्रोत

ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में महाकाल को चिता भस्म से श्रृंगार किया जाता था, लेकिन वर्तमान समय में यह परंपरा बदल गई है। अब मंदिर प्रशासन विशेष रूप से तैयार की गई गोबर की भस्म का उपयोग करता है। इस भस्म को मंदिर परिसर में ही तैयार किया जाता है और पूरी तरह से शुद्ध एवं धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार बनाई जाती है।

भस्म आरती की पौराणिक मान्यता

शिव पुराण और अन्य धर्मग्रंथों में कहा गया है कि महाकाल स्वयं कालों के काल हैं और मृत्यु के बाद जीवन का प्रतीक हैं। भस्म आरती मृत्यु को याद दिलाने के साथ-साथ जीवन की नश्वरता को भी दर्शाती है।

कैसे होती है भस्म आरती?

  • प्रातः 4 बजे मंदिर के पुजारी सबसे पहले महाकाल का अभिषेक करते हैं।
  • फिर विशेष मंत्रों के साथ भगवान महाकाल को भस्म अर्पित की जाती है।
  • इसके बाद दीप, धूप और अन्य पूजा सामग्री से आरती की जाती है।

भस्म आरती देखने के नियम

यदि आप महाकाल की भस्म आरती देखना चाहते हैं, तो पहले से ऑनलाइन या ऑफलाइन बुकिंग करनी होगी। मंदिर प्रशासन भक्तों की सुविधा और परंपराओं का पालन सुनिश्चित करता है।

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