सलोनी तिवारी / नवदीप चतुर्वेदी : सनातन धर्म में अग्नि को पवित्रता, ऊर्जा और दिव्यता का प्रतीक माना गया है। प्राचीन काल से ही अग्नि की उपासना की परंपरा चली आ रही है। धूना (धूनी) इसी अग्नि उपासना का एक महत्वपूर्ण रूप है, जिसे साधु-संतों, तपस्वियों और गृहस्थों द्वारा धर्म एवं साधना के रूप में अपनाया जाता है। यह केवल धूप-धुआं करने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र भी माना जाता है।
उज्जैन स्थित श्री महाकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन प्रातःकाल होने वाली भस्म आरती विश्व प्रसिद्ध है। यह आरती भगवान महाकाल को अर्पित की जाने वाली विशेष पूजा है, जिसमें पवित्र भस्म का प्रयोग होता है। इस दिव्य आरती की परंपरा को बनाए रखने के लिए मंदिर परिसर में एक अखंड पवित्र धूना (धूनी) निरंतर जलता रहता है, जिसे विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व प्राप्त है।
पवित्र धूना का महत्व
महाकाल मंदिर में स्थित यह अखंड धूना केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह शक्ति, साधना और आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र भी है। यह धूना वर्षों से निरंतर जल रहा है और यह महाकालेश्वर की भस्म आरती से गहराई से जुड़ा हुआ है।
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भस्म आरती की पवित्रता बनाए रखना
- इस धूने से प्राप्त भस्म का उपयोग महाकाल की विशेष आरती में किया जाता है।
- यह भस्म शुद्ध और दिव्य मानी जाती है, जो भक्तों को आत्मिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करती है।
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धार्मिक और तांत्रिक महत्व
- महाकालेश्वर शिव तंत्र परंपरा से जुड़े हुए हैं, और अग्नि का संबंध इस साधना से गहरा है।
- धूनी का निरंतर जलते रहना तांत्रिक परंपराओं और सिद्ध साधनाओं का प्रतीक है।
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वातावरण की शुद्धता
- इस धूने में गूगल, लोबान, कपूर और अन्य औषधीय तत्व डाले जाते हैं, जिससे वातावरण शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहता है।
- भक्तों को आध्यात्मिक अनुभूति और मानसिक शांति का अनुभव होता है।
महाकाल मंदिर की अखंड धूनी का इतिहास
- यह धूना प्राचीन काल से जलता आ रहा है और मंदिर के पुजारी इसे विशेष देखरेख में रखते हैं।
- यह धूनी केवल महाकाल की सेवा के लिए उपयोग होती है और इससे प्राप्त भस्म को अत्यंत पवित्र माना जाता है।
- कहा जाता है कि इस धूने की ज्वाला कभी भी बुझने नहीं दी जाती, ताकि भस्म आरती की परंपरा अक्षुण्ण बनी रहे।
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भस्म आरती और धूना का संबंध
- प्रातःकाल होने वाली भस्म आरती के लिए विशेष रूप से तैयार की गई भस्म का उपयोग किया जाता है।
- इस भस्म को बनाने में प्राचीन विधियों का पालन किया जाता है, जिससे इसकी पवित्रता बनी रहती है।
- महाकाल की इस आरती में भाग लेना भक्तों के लिए एक अलौकिक अनुभव होता है, जिसमें वे धूने की दिव्यता को अनुभव कर सकते हैं।
धूना और भक्तों की आस्था
- श्रद्धालु इस पवित्र धूने के दर्शन कर स्वयं को धन्य मानते हैं।
- मंदिर में आने वाले भक्त इसके धुएं को अपने ऊपर लेने से इसे शुभ और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत मानते हैं।
- महाकाल के अनन्य भक्त इस धूने से प्रेरणा और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करते हैं।