कई साल पहले की बात है, देवी पार्वती ने मिट्टी से एक पुतला बनाया और उसे प्राण प्राप्त करने के लिए उसके शरीर में प्राण डाले। इस तरह, उन्होंने अपने आपको एक पुत्र की माँ बनाया। उन्होंने उसे गणेश के नाम से जाना।
पार्वती माता ने गणेश को बहुत प्यार से पाला और संतान के समस्याओं का समाधान देने वाले देवता की भूमि पर बनाया। गणेश बचपन से ही बहुत बुद्धिमान और परम परमेश्वर के दिल के बहुत करीब थे।
एक दिन, गणेश ने वाहन चोखड़ के साथ अपनी मां से कहा, “माता, मैं चाहता हूँ कि मैं सभी देवताओं के प्रमुख बनूं और मुझे सबका सम्मान मिले।”
पार्वती माता ने उनके मनोबल को देखकर कहा, “बेटा, तुम बिना किसी यज्ञ के या बिना किसी व्रत के नहीं कर सकते।”
इस पर गणेश ने सोचा कि वह कैसे एक व्रत के जरिए सभी की मांग पूरी कर सकते हैं। उन्होंने निश्चित तिथि का चयन किया और उस दिन से गणेश चतुर्थी का पर्व मनाने का आयोजन किया। उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे इस व्रत को मनाएं और उनकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी।
इस प्रकार, गणेश चतुर्थी का पर्व मनाने का प्रारंभ हुआ और वही संदेश आज भी हमारे बीच है कि हमें अपने मनोबल और शक्तियों का सही तरीके से उपयोग करके अपने लक्ष्यों को पूरा करने में सफलता मिलती है।