आज है सावन का है बेहद खास सोमवार करें इस विधि से शिव का रद्राभिषेक,होगी हर मनोकामना पूरी

नई दिल्ली। देवों के देव महादेव का सबसे खास आज का दिन सावन का चौथा सोमवार व्रत रखा जा रहा है। ये व्रत सुहागिन महिलाओं और लड़कियों के लिए बेहद खास होता है। इस दौरान शिव-पार्वती की जोड़ी की पूजा अर्चना करने से जीवन में सुख-समृद्धि एयर शांति बनी रहती है। आज सावन के चौथे सोमवार के शुभ दिन पर शुक्ल योग का निर्माण हो रहा है। इस योग में शिव जी का रुद्राभिषेक करने से धन लाभ के प्रबल योग बनते हैं।

ऐसे में शिवलिंग पर बेलपत्र और पुष्प चढ़ाने से मनचाहे फल की प्राप्ति हो सकती हैं। इस दौरान कुछ खास उपाय करने से आपके बिगड़े हुए बन सकते हैं । इसके साथ ही सफलता के योग का भी निर्माण होता है। इसी कड़ी में आइए उन उपायों के बारे में बात करते हैं।

रुद्राभिषेक विधि- सावन के चौथे सोमवार पर रुद्राभिषेक करने पहले शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, शहद, शर्करा और गंगाजल से अभिषेक करें। इस दौरान शिव जी के महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। इसके बाद आप शिवलिंग पर धतूरा, चावल, फूल, बेलपत्र और भांग चढ़ाएं। फिर कुछ फल अर्पित करते जाएं। अंत में आरती करते हुए शंखनाद करें। ऐसा करना शुभ होता है।

महादेव के पूजन की विधि- सावन के चौथे सोमवार पर सुबह ही स्नान कर लें। फिर साफ वस्त्रों को पहनें । इसके बाद पूजा की सामग्री को एकत्रित कर लें। अब जहां भी पूजा करनी है, वहां पर अपना स्थान लें। अब सबसे पहले शिवलिंग का गंगाजल और दूध से अभिषेक करें। इसके बाद शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा और गंगाजल चढ़ाएं। बाद में भगवान शिव को आक का फूल अर्पित करें। अब मिठाई और फल को चढ़ाएं।और आखिर में शिव जी की आरती करें।

सावन के चौथे सोमवार पर गन्ने के रस से महादेव का अभिषेक करें। इससे सफलता के योग का निर्माण होता है।

इस दौरान भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित करें। माना जाता है कि इससे ग्रह दोष से छुटकारा मिलता है।

सावन सोमवार के शुभ दिन पर शिवलिंग पर 108 बेलपत्र चढ़ाएं। इस दौरान शिव-पार्वती की पूजा भी करें। ऐसा करने से विवाह में आ रही अटकलें दूर होती हैं।

इस दिन शिवलिंग के आगे 11 घी के दीपक जलाने से हर इच्छा पूरी होती है

शिव जी की आरती-

ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।

ओम जय शिव ओंकारा।।

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन

वृषवाहन साजे।।

ओम जय शिव ओंकारा।।

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।

त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।

ओम जय शिव ओंकारा।।

अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।

त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।

ओम जय शिव ओंकारा।।

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।

सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।

ओम जय शिव ओंकारा।।

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।

ओम जय शिव ओंकारा।।

लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।

पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।।

ओम जय शिव ओंकारा।।

पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा।

भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।।

ओम जय शिव ओंकारा।।

जया में गंग बहत है, गल मुण्ड माला।

शेषनाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।।

ओम जय शिव ओंकारा।।

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।

नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।।

ओम जय शिव ओंकारा।।

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।।

ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।

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