मदरसा बना नकली नोट छापने का कारखाना, तीन महीने में छापे 18 लाख..

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे प्रयागराज में बिना बिना मान्यता के चल रहे मदरसे में धड़ाधड़ जाली नोट छापने का कारोबार चल रहा है यहां रोजाना 20 हजार रुपये तक की भारतीय मुद्रा यानी कि नकली नोट की छपाई की जाती थी। इन नोटों की छपाई लिए अच्छी क्वालिटी का पेपर , और स्याही भी इस्तेमाल सामग्री बेहतर क्वालिटी की यूज़ की जाती थी जिससे जली नोट ओरिजनल सा लगे। प्रिंटेड नोट को पटरी की मदद से कटर ब्लेड के जरिए ढंग से से काटा जाता था। इसके बाद असली नोट में इस्तेमाल होने वाले मैटेलिक धागे की तरह नकली नोट पर हरे रंग का चमकीला टेप लगाते थे, ताकि देखने वालों की आँखों में ढंग से धूल झोंकि जा सके। पकड़े गए आरोपित यह जानते थे कि पांच सौ रुपये की नोट को लेने से पहले कोई भी दुकानदार कई बार उलट-पलट कर तोड़ मरोड़ कर देखता है,

नोट छापने में सरगना मौलवी का हाथ– नोट छापने के मामले में मौलवी समेत अन्य ने 100-100 रुपये की नोट ही छापने का प्लान बनाया था। पुलिस का कहना है कि गिरोह का सरगना जाहिर खान और मो. अफजल दिन में नोटों की छपाई करते थे। वह हाई क्वालिटी के स्कैनर से 100 रुपये की नोट को स्कैन करते थे और फिर उसी सिरीज के नोट का प्रिंट निकालते थे।

प्रिंटेड नोट की पटरी को पटरी से काटते थे – रात को साइज के अनुसार ही नोट की कटाई करते थे और फिर उसकी गड्डी बनाकर तैयार करते थे। इसके बाद अफजल अपने साथी सादिक के साथ नोट लेकर बाहर निकलते थे। वह रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड अथवा ऐसी जगह पहुंचते थे, जहां लोगों को कहीं भी आने-जाने की जल्दी रहती थी।

नोट सरकुलेट करने केलिए रखे थे लड़के– अफजल व सादिक अपने संपर्क में रहने वाले लड़कों को नकली नोट देते थे और छोटा-छोटा सामान खरीदने के लिए कहते थे। नकली नोट लेने वाले व्यक्ति को अगर विश्वास नहीं होता था तो चाय-पान, नाश्ते की दुकान पर पानी की बोतल सहित अन्य सामान खरीदते थे। इसके बाद दुकानदार को नकली नोट थमा देते थे, जो बिना जांच के रख लेता था।

तीन महीने से चल रही नकली नोट की फैक्ट्री छापे 18 लाख- 

पुलिस के मुताबिक कि आरोपित पिछले तीन महीने से फैक्ट्री संचालित कर रहे थे। रोजाना 20 हजार रुपये की नकली नोट के हिसाब से 18 लाख की जाली मुद्रा बाजार में पहुंच चुकी है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान हुआ है।

जली नोटों से चला रहे थे ज़िंदगी 

मौलवी, सरगना और बाकी सदस्यों की आजीविका नकली नोट से ही चल रही थी। पूछताछ में पता चला है कि नकली नोट के बदले मिलने वाली असली नोट को वह अपने परिवार के सदस्यों को देते थे और खुद भी खर्च करते थे। कई बार नकली नोट का इस्तेमाल करके घरेलू और दूसरी जरूरत का सामान लेते थे। सभी लोग योजनाबद्ध तरीके से यह काम कर रहे थे और करीबियों को इसके बारे में नहीं बताते थे। इस गैंग में शामिल अन्य लोगों के बारे में भी पुलिस व एसओजी टीम पता लगा रही है।

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