नई दिल्ली। आज भाद्र माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि है आज ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है। ऐसे में इस बार यह व्रत 08 सितंबर को रखा जा रहा है। पुराणों के अनुसार अगर देखा जाए तो, यह व्रत गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद यानी कि गणेश चतुर्थी के दूसरे दिन मनाया जाता है। कोई भी व्रत कथा के बिना अधूरा माना जाता है। ऐसे में चलिए जानते हैं ऋषि पंचमी की कथा।
जानते हैं ऋषि पंचमी की कथा– ऋषि पंचमी की कथा के अनुसार, एक नगर में एक किसान और उसकी पत्नी रहती थी। एक बार उसकी पत्नी रजस्वला हो गई, लेकिन यह जानने के बावजूद वह अपने कार्यों में लगी रही। जिस कारण उसे दोष लग गया, चूंकि उसका पति भी इस दौरान उसके संपर्क में आ गया, तो वह भी इस दोष का शिकार हो गया, जिस कारण वह दोनों अगले जन्म में जानवर बन गए। पत्नी को कुतिया का जन्म मिला, तो वहीं पति बैल अपने पुत्र के ही घर में रहने लगे।
पुत्र नें दोनों की बात – इस दोनों का इसके अलावा कोई और दोष नहीं था, इसलिए इन्हें पूर्व जन्म की सारी बातें याद थीं। इस रूप में दोनों अपने पुत्र के घर रहने लगे। एक दिन पुत्र के यहां ब्राह्मण पधारे और उसकी पत्नी ने ब्राह्मणों के लिए भोजन पकाया। लेकिन इस दौरान खीर में एक छिपकली गिर गई, जिसे उसकी मां ने देख लिया।
अपने पुत्र को ब्रह्म हत्या से बचाने के लिए उसने अपना मुख खीर में डाल दिया, लेकिन कुतिया की यह हरकत देखकर, पुत्रवधू को बहुत गुस्सा आया और उसने मारकर उसे घर से बाहर निकाल दिया। जब रात के समय वह यह सारी बात बैल के रूप में अपने पति को बता रही थी, तो उनकी सारी बातें उनके पुत्र ने सुन ली। तब उसने एक ऋषि के पास जाकर इसका उपाय पूछा।
ऋषि ने बताया ये उपाय
ऋषि ने पुत्र से कहा कि अपने माता-पिता को इस दोष से छुटकारा दिलाने के लिए तुम्हें और तुम्हारी पत्नी को ऋषि पंचमी का व्रत करना होगा। ऋषि के कहे अनुसार, पुत्र ने ऐसा ही किया, जिससे उन दोनों को पशु योनि से छुटकारा मिल गया। इसलिए महिलाओं के लिए ऋषि पंचमी का व्रत बहुत ही उत्तम माना जाता है।