“कानपुर के सितारे” – “साहेब स्मृति फाउंडेशन” के तत्वाधान में कवि सम्मलेन व मुशायरे का हुआ आयोजन

कानपुर 18 जून २०२२ | “साहेब स्मृति फाउंडेशन” के तत्वाधान में स्थानीय स्टॉक एक्सचेंज प्रेक्षागार में “कानपुर के सितारे” दसवां कवि सम्मलेन व मुशायरे का आयोजन किया गया ! साहेब स्मृति फाउंडेशन की संस्थापक एवं अध्यक्षा डॉक्टर इरा मिश्रा जी पिछले ७ वर्षों से निरंतर गुरुवर श्रद्धेय हज़रत मंज़ूर आलम शाह ‘कलंदर मौजशाही’ की मधुर स्मृति में सूफी संगीत, कवि सम्मलेन व् मुशायरे का आयोजन करके राष्ट्रहित में गंगा जमुनी तहजीब को बनाये रखे हैं और सूफी की अविरल धारा से प्रेम शांति और इंसानियत का सन्देश देती आ रही हैं |
कार्यक्रम का उद्घाटन सर्वप्रथम संस्था की संस्थापिका वा अध्यक्ष डॉक्टर इरा मिश्रा जी के द्वारा हुज़ूर साहेब के चित्र पर माल्यार्पण किया फिर विधवत मंत्रोचारण के साथ खानकाह के श्री अजीत तिवारी ने द्वीप प्रज्वलित करके किया ! तत्पश्चात खानकाह की सूफी गायिका संगीता जी के द्वारा सूफी कलाम
नमन करूं मैं गुरुचरनन की,
उसके बाद
आए बजायो जमुना तट पे, और आखिरी में
दुनिया से क्या कहना सुनना इससे कर कुछ कहा करो,
राम भरोसे रहने वाले राम भरोसे रहा करो ।
पेश किये गए |

 


सूफ़ी गायन के बाद कवि सम्मलेन और मुशायरे की शुरुआत हुई | इस कवि सम्मलेन और मुशायरे की सदारत जाने माने शायर जनाब अंसार कंबरी ने की |
जिन शायरों और कवियों ने अपने गीत, ग़ज़लें और मुक्तक पेश किये वो कुछ यूँ थे |

कई थे दुशमने जाँ, उनमें जिंदगी भी थी
गजब ये है उसी जालिम से दोस्ती भी थी।
खड़े हुए थे जहाँ मौत मागंने वाले
उसी कतार में देखा तो जिंदगी भी थी।
– असलम महमूद
— — —
तुम्हारी याद से रौशन दरो दीवार रहते हैं
मैं अक्सर शाम को दीपक जलाना भूल जाती हूँ
अलका मिश्रा
— — —
वो लगावट का इशारा नहीं होने देते,
हम भी इजहारे तमन्ना नहीं होने देते !
सारे इलज़ाम लिए फिरते हैं अपने सर पर,
हम उन्येहें शहर में रुसवा नहीं होने देते !
– फ़ारूक़ जायसी
— —
जब वो मेरे करीब आता है
रंग दुनिया का बदल जाता है !
रूबरू है भी वो नहीं भी है,
उसकी छुअनो का हमसे नाता है !
– लोकेश शुक्ल
— —
काश वे दिन भी लौट कर आएं
डूब कर जिन में ख़ुद को दोहराएं
धूप का सिलसिला हो और कभी
बादलों की तरह बरस जाएं
– मृदुल तिवारी –कानपुर
— —
हो के बेखौफ वह सामने आ गए,
मुस्कुराने का हम रास्ता पा गए !
उसने जब रख दिया मुझ पे दस्ते करम,
सारे रंजो अलम मेरे घबरा गए !
– अतीक फतेहपुरी
— —
न मैं मजलूम हूं सुन लो, न कोई बेजुबां हूं
न रोके से रुकेगा , बढ़ रहा वो कारवां हूं
न तुम जुर्रत कभी करना मुझे आँखें दिखाने की
सुनो मैं शक्तिशाली आज का हिन्दोस्तां हूं ।
– देवेन्द्र सफल
— —
चूम कर मस्तक मेरा
तुम प्राण प्रिय जब से गए हो।
कोर के दृग बिंदु अपलक
राह तब से तक रहे हैं।।
‘ सुरेंद्र गुप्त सीकर
— —
बादलों ने फिर कहा, आओ चले घर छोड़ कर,
चाह कर भी हम निकल पाए न पिंजड़े तोड़ कर !
– विनोद श्रीवास्तव
— —
गुज़रे हुए दिनों में पलट कर नहीं गए,
इक बार घर से निकले तो फिर घर नहीं गए !
– हाफ़िज़ अख्तर
— —
बिना लफ़्ज़ों का कोई ख़त पढ़ा क्या,
मोहब्बत से कभी पाला पडा क्या !
अगर तुम प्यार का मतलब न समझे,
तो साड़ी जिंदगी तुमने पढ़ा क्या !
– राजेंद्र तिवारी
— —
गाँवों की चौपालों ने
बतियाना छोड़ दिया
इसीलिये तो खुशियों ने
मुसकाना छोड़ दिया
– जय राम जय
— —
कोई सांसों के मधुबन को महका गया,
अनछुई सी छुअन देके बहका गया,
प्राण राधा बने तन बना बांसुरी,
मोहिनी डाल जीवन को चहका गया
– प्रतीक्षा तिवारी
— —
ये राज़ मौज विला आ के हमने जाना है,
कोई भी धर्म हो ये सब का आशियाना है,
यहॉं गले ही नहीं दिल मिलाते जाते हैं,
ये ख़ानक़ाह मोहब्बत का आस्ताना है।
– अंसार क़म्बरी
— —
वो जो आँखों मे अदावत लिए आए थे कभी,
आज लगता ही नहीं वो भी पराए थे कभी।
इनकी ताबीर भी देखेगी ये दुनिया एक दिन,
ख़्वाब आँखों मे तेरी हमने सजाए थे कभी।
– अतुल बाजपेई
— —
ये दुनिया है गुलशन सी, हम ज़िक्र ये करते हैं,
वो काटों से डरते हैं, हम काँटों में पलते हैं !
– प्रदीप श्रीवास्तव ‘रौनक कानपुरी’

 

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